Tuesday, December 27, 2011

आज जश्न है












रात के अँधेरे में 
दूर कहीं एक जंगल में
 एक लाश जल रही थी
 चाँद की रोशनी उस पर
 स्पाट लाइट की तरह पड़ रही थी
 झींगुर संगीत बजा रहे थे, 
उस लाश के चारो ओर
 मुर्दे निर्वस्त्र होकर नाच रहे थे,
 आज जश्न है
आज जश्न है
कह उस आदमी को बुला रहे थे
 जो अभी अभी लाश में तब्दील हुआ था, 

ज्यों ज्यों रात बढ रही थी 
अंगीठियाँ सुलग कर 
और लाल हो रही थी
 उन लाल अंगीठियों को देख
 एक ततैया आकर्षित हो गई.
अपने पंखो को फैला 
ख़ुशी से झूमती
 हवा में उड़ती
अंगीठियों को चूमने चली,
 लाश ने उसे रोकना चाहा
 शायद आवाज भी लगाई
पर झींगुर के संगीत में 
ओर मुर्दों की मौज में
 उसकी आवाज दब गई
 ज्यूँ ही ततैया अंगीठियों के करीब आई
उसके पंख झुलस गए,
 वह ज़मीन पर गिर तड़पने लगी
 जोर जोर से कराहने लगी 
मुर्दों ने देखा उसकी आँखों में
 आंसू भरे थे
 झींगुर भी बगल में चुप चाप खड़े थे
 और लाश
 लाश का क्या है,
 वो तो पहले भी जल रही थी, 
 जंगल में एकदम से सन्नाटा पसर गया
 फिर...
 फिर क्या
 झींगुर एक बार फिर संगीत बजाने लगे 
मुर्दे नाचने लगे 
आज जश्न है
आज जश्न है
कह ततैया को बुलाने लगे...

Saturday, December 3, 2011

पगडंडी




पगडंडी जो जाती है
गाँव से शहर की ओर
बनी है
इच्छाओं से
सपनो से
उम्मीदों से
और अवसर के
अभाव से...

Monday, November 7, 2011

सफ़र










ना कभी किसी इलाके से-
इश्क़ किया,
ना कभी किसी बस्ती ने-
अपना कहा.
कुछ पल, 
कुछ लोगो के साथ बैठे,
उनसे बोला, 
उनसे  बतियाये  और
उनकी यादों को समेट ...  
आगे बढ गए.

Sunday, November 6, 2011

वो दस घंटे











वो दस घंटे
खुबसूरत, नटखट, चुलबुले 
परेशानी से भरे 
गहरे एहसास में सने 
कई तस्वीरे निहारते 
हर एक तस्वीर एक कहानी कहती है
अपने में एक संस्कृति समेटे
एक लड़की का नटखट बचपन
एक युवा का गौरवशाली जीवन
उसकी एक छोटी सी बगिया
जिसमे कई सारे बच्चे खेले
कुछ खट्टी मीठी बातों को दोहराते
वो दस घंटे

वो दस घंटे
एक कमरे में बंद
अपने लैपटॉप पर अंगुलियाँ फिरते
कई पात्र मुझे आस-पास घूमते मिले
ज्यादातर मुस्कराते
मगर हर मुस्कान में
अलग-अलग भाव मिले
कहीं बच्चों की शरारत
तो कहीं ममता का आँचल मिला
एक प्यारी सी दुनिया में
ले गए मुझे वो दस घंटे

वो दस घंटे
हाई सालों से लम्बे गुजरे
दिनिंग टेबल पर एकसाथ बैठे
हम उस परिवार का एक अंग बने
भाजी और तरकारी का नाम ही नहीं
थोडा स्वाद भी अलग था
पर दोनों में एक एहसास 
था 
जो कॉमन था 
बेटा एक और रोटी ले लो
इस आवाज़ में कोई अपना छिपा था
यूँ जाते-जाते आँखें नम कर गए
वो दस घंटे...

Monday, July 4, 2011

एक बरसात कई मायने

एक बरसात कई मायने,                                            
किसी का दिल रोता तो,
किसी का उमड़ उमड़ कर गता.
कुछ मस्ती करने घर से निकालें,
किसी के सर पर छत नहीं रहा.
.कोई सड़क पर फैली,
कीच कीच से परेशान,
तो कई उमंग में नाच रहे.
रस्ते पर पड़ा अधनंगा भिखारी,
तेज हवाओं को झेल रहा.
कोई कॉफ़ी का कप हाथ में थामे,
अपने खिड़की के सामने खड़ा,
ठंडी बौछार का मजा ले रहा...
                                            -रवि कुमार

खामोश हूँ

ना दुखी हूँ
ना  नाराज  हूँ
बस मैं...
खामोश हूँ

ना किसी से शिकायत
ना किसी से रंजिश
आप जो समझे
समझे
आपकी मर्जी
मैं  तो
बस
खामोश हूँ

जब बोलता था
कभी करेला
तो कभी
मिसरी घोलता था
कुछ खुश  थे
तो
कुछ हमसे दूर दूर थे
अब पास कोई नहीं
अब बस खुद में ही
खुश हूँ
कमोश हूँ

दुनिया में
कहीं जशन है
कही मातम है
ना कोई हाथ
बधाई का है
ना आंशु पोछने  को
मैं  अपने अन्दर
ख़ामोशी समेटे हूँ
बस खुद में ही
खुश हूँ
खामोश हूँ....
 

कहानी शुकला जी के लैपटॉप की

 
भाग : 1  
चले  4 पल्टर  
लैपटॉप लेने 
2 रवि  
एक सुमित  और  
एक शुकला अल्टर  
"अभि" सर भी  साथ  थे 
पर  न  आ सके ऑटो  के  अन्दर 
भाग  चले  ये  चारो  पल्टर  
"अभि"  सर  रह  गए   
रोड  पर  सटक  कर....
भाग : 2 
शुकला जी  चले  लैपटॉप लेने
साथ  में  हम  भी  चले
रास्ते  में  पूछने  लगें
ससुरा  लैपटॉप  का 
configration क्या  रखें
हम  बोले... 
configration का  क्या  कीजियेगा
बोले  लैपटॉप  तेज  चलाना  है
हम  फिर  बोले
बस...! Configration छोडिये
लैपटॉप  को  भी  दो  पेग  पिला  दीजियेगा 
                                                                 - रवि कुमार
 

सच्चाई स्वीकारो

हर सफाई देता इनसान,
पाकिस्तानी  नहीं होता.
हर मौन व्यक्ति,
ज्ञानी नहीं होता.
मुछो को ताव देने से,
गुलामी छुपती है कहा.
सच्चाई स्वीकारना है,
तो स्वीकारो.
यूँ अंदर ही अंदर-
घुट घुट के मरने से,
कोई अमर नहीं होता.  
                                - रवि कुमार
                

Friday, April 22, 2011

चलो साकी महफ़िल शुरू करतें हैं

चलो साकी  महफ़िल शुरू  करतें हैं,
तुम जाम भरो हम खली करतें हैं. 
तुम कुछ नए नज़्म गुनगुनाओ, 
हम कुछ पुरानी  बातें भूलतें हैं.
साज़ और ताल की तुम फिकर न करना,  
दाद हम देते रहेंगे.
किसी ने वादा किया है  आने का,  
आज से पांचवे  दिन  साकी,
चलो ये दुनिया चार दिन में ही- 
तमाम करतें हैं,
चलो साकी  महफ़िल शुरू करतें हैं ...
                                                             -रवि कुमार 

Tuesday, April 19, 2011

वही चेहरा


कल आओ जो तुम
अपना चेहरा लेते आना
वो चेहरा नहीं जो, दुनिया को दिखाते हो
वो जो तुम्हारा अपना है
वो जिसे मैंने देखा है
वो जिस पर हर भाव
स्वाभाविक होता है
हाँ! हाँ!
वही चेहरा
तुम कल जरुर लाना.
                                  - रवि कुमार

Wednesday, January 12, 2011

The reason of smile

The reason of smile
Everyday when I go to have dinner,
I see a lady on a wheel chair,
A legless lady with desire to fly,
The thing which surprise me is "her smile".
In condition which makes all the wings
of desire to brust out.
What is the reason of her smile?

The question kept on revolving in my mind for a week.
And one day I dare to find out,
I stopped her with a formal greet,
After sharing some thoughts on problems-
-of our colony,
I put my main question,
She gave a gentle smile
and asked
"what you do when you see me smiling".
"I also give  a smile" I replied,
Thats's the reason I smile.
As the world is a mirror,
I smile to make the world smile.
                                               -"Ravi Kumar"

Tuesday, January 11, 2011

ये मौसम ही कुछ ऐसा है

ये मौसम ही कुछ ऐसा है
कहीं  किसी का दिल टुटा है,
किसी ने दिल को तोडा है,
बिजली ने बादल को चिरा है,
हर लम्हा हर वक़्त-
कई बुँदे जमीं पर टपकी हैं,
ये मौसम ही कुछ ऐसा है,
जिसमे हर क्षण हर पल-
किसी ना किसी का दिल टुटा है.

अरमानो का दिया जला था,
तेज आँधियों में भी लहका था,
ठंडी बयार ने उसे बुझाया है.
धरती सागर एक हुए हैं,
आज अखो में इतना पानी है.
ये मौसम ही कुछ ऐसा है,
जिसमे हर क्षण हर पल-
किसी ना किसी का दिल टुटा है.

                                                                                          - "रवि कुमार"