Monday, November 7, 2011

सफ़र










ना कभी किसी इलाके से-
इश्क़ किया,
ना कभी किसी बस्ती ने-
अपना कहा.
कुछ पल, 
कुछ लोगो के साथ बैठे,
उनसे बोला, 
उनसे  बतियाये  और
उनकी यादों को समेट ...  
आगे बढ गए.

Sunday, November 6, 2011

वो दस घंटे











वो दस घंटे
खुबसूरत, नटखट, चुलबुले 
परेशानी से भरे 
गहरे एहसास में सने 
कई तस्वीरे निहारते 
हर एक तस्वीर एक कहानी कहती है
अपने में एक संस्कृति समेटे
एक लड़की का नटखट बचपन
एक युवा का गौरवशाली जीवन
उसकी एक छोटी सी बगिया
जिसमे कई सारे बच्चे खेले
कुछ खट्टी मीठी बातों को दोहराते
वो दस घंटे

वो दस घंटे
एक कमरे में बंद
अपने लैपटॉप पर अंगुलियाँ फिरते
कई पात्र मुझे आस-पास घूमते मिले
ज्यादातर मुस्कराते
मगर हर मुस्कान में
अलग-अलग भाव मिले
कहीं बच्चों की शरारत
तो कहीं ममता का आँचल मिला
एक प्यारी सी दुनिया में
ले गए मुझे वो दस घंटे

वो दस घंटे
हाई सालों से लम्बे गुजरे
दिनिंग टेबल पर एकसाथ बैठे
हम उस परिवार का एक अंग बने
भाजी और तरकारी का नाम ही नहीं
थोडा स्वाद भी अलग था
पर दोनों में एक एहसास 
था 
जो कॉमन था 
बेटा एक और रोटी ले लो
इस आवाज़ में कोई अपना छिपा था
यूँ जाते-जाते आँखें नम कर गए
वो दस घंटे...