Friday, August 31, 2012

कहानी

कुछ सपनों से ली हैं,
कुछ यादो से ली हैं ,
और कुछ ख्यालों से ली हैं। 
कभी किसी हमसफर से सुनी, 
तो कभी अख़बारों के पन्नों से आई हैं।
कितनी कहनियाँ  हैं छिपी इस दिल में,  
मगर मजबूर ये जुबां,  
जिसपर शब्द चढ़े हैं टेढ़े मढ़े से, 
खुद में उलझे और अपनी जगह से  फिसलते।
कहानियां मचलती हैं बाहर आने को 
और ये दिल तलाशता है, 
एक ऐसी विश्व  भाषा, 
जो शब्दों के बोझ  से मुक्त हो,
और वो कहानी हर इन्सान तक पहुचे।।।

                                          - रवि कुमार