Thursday, December 2, 2010

कॉपी का आखरी पन्ना

        
     कॉपी का आखरी पन्ना,
आखरी मगर कमाल का होता है.
काफी रचनात्मक,
कई राज अपने में छुपाये होता है.
कई अधूरे सपनो का गवाह होता है,
कई सफलताओ का आधार बनता है.
ना जाने कितने चिन्ह अपने में समाये,
कुछ जाने पहचाने चिन्ह,
कुछ हड़प्पा मोहन्जोद्रो के चिन्हों से-
भी ज़यादा पेचीदा चिन्ह.

                             कॉपी का आखरी पन्ना,                        
आखरी  मगर कमाल का होता है.
क्लास के बीच में ही,
खेल का मैदान बन जाता है,
शुन्य काटा से कई घर भर जाते है.
और उन्ही शुन्य काटो के बीच,
कई अनकही बातें  खो जाती हैं.
             बातें...!
जो दिल से आखिरी पन्ने पर तो उतरी
             
पर वहां तक ना पहुँची
जहाँ के लिए निकली थी.

कॉपी का आखरी पन्ना,
आखरी मगर कमाल का होता है.
पिन ड्रॉप साइलेंस में दोस्तों का
चाट रूम बन जाता है,
चुप चाप गिले शिकवे दूर हो जाते हैं.
अगली क्लास का,
लंच ब्रेक का,

छुट्टी का,
यूँ ही बैठे बैठे  प्लान बन जाता है .

औटोग्राफ से भरा,
 कई बार आखरी पन्ना मिलता है.
 पर किसी स्टार का नहीं,
 यहाँ अपना और अपने दोस्तों का
 हस्ताक्षर होता है.
 या यूँ कहिये कल के स्टार बनने वालो की,
आज ये आखिरी पन्ना हसरत पूरी करता है.

कॉपी का आखरी पन्ना,
आखरी मगर कमाल का होता है.
कभी इस पर उलटी- सीधी विद्या,
सीखी सिखाई जाती है,
 तो कभी अरबी हिंदी,
 एक दुसरे को समझते मिलते हैं.
 उलझी हुई बातें भी,
बड़े बेबाक ढंग से स्पष्ट हो जाती हैं.

जब आम पढाई से मन उबने लगता है,
शिक्षक उबाऊ लगने लगते हैं,
तब ये आखरी पन्ना,
एक अलग क्लास रूम बन जाता है....
                                                           
                                                                     "रवि कुमार"