रात के अँधेरे में
दूर कहीं एक जंगल में
एक लाश जल रही थी
चाँद की रोशनी उस पर
स्पाट लाइट की तरह पड़ रही थी
झींगुर संगीत बजा रहे थे,
उस लाश के चारो ओर
मुर्दे निर्वस्त्र होकर नाच रहे थे,
आज जश्न है
आज जश्न है
कह उस आदमी को बुला रहे थे
जो अभी अभी लाश में तब्दील हुआ था,
ज्यों ज्यों रात बढ रही थी
ज्यों ज्यों रात बढ रही थी
अंगीठियाँ सुलग कर
और लाल हो रही थी
उन लाल अंगीठियों को देख
एक ततैया आकर्षित हो गई.
अपने पंखो को फैला
ख़ुशी से झूमती
हवा में उड़ती
अंगीठियों को चूमने चली,
लाश ने उसे रोकना चाहा
शायद आवाज भी लगाई
पर झींगुर के संगीत में
ओर मुर्दों की मौज में
उसकी आवाज दब गई
ज्यूँ ही ततैया अंगीठियों के करीब आई
उसके पंख झुलस गए,
वह ज़मीन पर गिर तड़पने लगी
जोर जोर से कराहने लगी
मुर्दों ने देखा उसकी आँखों में
आंसू भरे थे
झींगुर भी बगल में चुप चाप खड़े थे
और लाश
लाश का क्या है,
वो तो पहले भी जल रही थी,
जंगल में एकदम से सन्नाटा पसर गया
फिर...
फिर क्या
झींगुर एक बार फिर संगीत बजाने लगे
मुर्दे नाचने लगे
आज जश्न है
आज जश्न है
कह ततैया को बुलाने लगे...