Monday, September 17, 2012

मेट्रो स्टेशन की सीढियाँ चढ़ते हुए




मेट्रो स्टेशन की सीढियाँ चढ़ते हुए
अकसर एक बुढ़िया मिल जाती थी
चेहरे पर जिसके समय ने जालें बुन दिए थे
बाईं आँख में उसके एक मोती था
जिसको आसुंओं की लगातार बहती धारा
धोते रहती थी
वह बिना कुछ कहे
बिना कोई गुहार लगाये
आने जाने वाले मुसाफिरों के सामने
अपने कांपते हुए हाथ फैलाये,
खड़ी रहती थी
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बहुत दिनों बाद
मेट्रो स्टेशन की सीढियाँ चढ़ते हुए
देखा तो
बुढ़िया  वहां नहीं थी
फटी मैली साड़ी  में लिपटी
एक और औरत थी
गोद में बच्चा
सामने दूध की खाली बोतल
बुढ़िया नहीं थी
पर मुसाफिरों के सामने फैले
हाथ वही थे
आँखों में आँसू वही थे
चेहरे पर मज़बूरी वही थी

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